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Showing posts from December, 2020

जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही खो गया।

 जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही खो गया परिवर्तन ये बड़ा अजीब हो गया । वो बारिश के मौसम में कागज की कश्ती तैराना, वो बारिश के पानी में दोस्तो संग नाचना-गाना,वो रेत के टीलों पर अपना-अपना घर बनाना, शोर -गुल के साथ गिल्ली-डंडा उड़ाना,वो बात बात पर रूठना-मनाना सब न जाने कही सो गया ,जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही खो गया। वो दादी-नानी की कहानियां सारी- सारी रात सुनना ,वो परियो और भूतों में बेहतरीन यकीन करना, वो छत पर सोते हुए अस्मा में यु तेरे गिनना ना जाने कहाँ खो गया ,जिंदगी की रेस मैं बच्चों का बचपन कही सो गया।  वो बचपन मे माँ का लोरी सुनाना, पिता का प्यार से कंधे पर बिठाना ,वो माता-पिता का बच्चों के साथ दोस्तों की तरह खेलते,नाचते,गाना हस्ते हँसाते उनको पढना ना जाने कहा खो गया जिन्दगी की रेस मैं बच्चों का बचपन कही खो गया। वो गलती करने पर मासूम सी शक्ल बनाना डाट से बचने के लिए आँसू बहाना, भरपूर नोटंकी दिखा-दिखा कर सबका दिल बहलाना,वो रोज नए सपने देख सबको बताना, हँसना-रोना तो कभी बड़ा सा मुँह फूलना सच मे बड़ा यादगार था, बचपन का हर किस्सा अब कही खो ,गया जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन