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माँ मुझे भी उड़ जाने दो ।


 तेरे आँगन की चिड़िया हु ना माँ, तो मुझे भी खुले आसमा में उड़ जाने दो, मुझे भी खुलकर पंख फेलाने दो, तेरे आँगन की गुड़िया हु न माँ, तो मुझे भी मन पसंद के खिलोनो से खेल जाने दो ।

 क्यों भवरों को ही छुट दे रखी हैं माँ ,मन चाहे फूलों पर मँडराने की, में भी तो तितली हु तेरे आँगन की मुझे भी छूट दे दो मनछाए फूलों पर मँडराने की उड़ कर महक बरसाने की। 

उड़ रहे हैं माँ सब खुले आस्मा में क्यों पंख मेरे बाँधे हुए हैं? मन मेरा भी चाहता हैं नील गगन में उड़ जाने को खुले अस्मा में पंख फैलने को आज़ादी के एहसास को महसुस कर जाने को। 


खुले दरवाजे सबके लिए यहाँ माँ क्यों खिड़की से में झाकु? बंद हैं यहाँ मेरा पिंजरा माँ कैसे यहाँ से में नील गगन की औऱ झाकु? कैसे उड़ने के लिए अपने पँखो को आकू।

शेरनी हु ना माँ में तेरे आँगन की तो क्यों बिल्ली बनकर औरो के पिछे भागु क्यों हर बार दूसरों के लिए में ही अपना सबकुछ त्यागू मुझे भी हक़ हैं खुलकर जीने का क्यों बन्द गुफा से में झाकु?

 एक मौका मुझे भी दो माँ मुझे भी उड़ जाने दो अपनी पसंद से जी जाने दो अस्मा को चूम आने दो अंतरिक्ष पर कदम बढ़ाने दो मैं भी सबकुछ कर  सकती हु माँ बस एक बार मुझे भी पिंजरे से बाहर आने दो।

बस हुआ माँ अब मुझे भी आजाद हो जाने दो बंद गुफा से बाहर आब मुझे भी जंगलों में सेर कर आने दो। 

         कमजोर नही हु में माँ एक बार मुझे ये बात साबित                 करके दिखाने दो मुझे भी पिंजरे से उड़ जाने दो।

👩HAPPY NATIONAL GIRL'S DAY👩

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