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बेटी

कभी-कभी मेरा मन भी विचलित हो जाता,


प्रश्नों का भंडार खड़ा हो जाता ,
क्यों होती बेटी की विदाई ,
क्यों सहनी पड़ती उसको अपनों से जुदाई ,
क्यों हर बार चोट उसको ही लगाई ?

अपनी खुशियों को छोड़ ,
क्यों उसे दूसरों की खुशियां थमाई ,
बजा के तूने शहनाई ,
बड़े दुख से कर दी उसकी विदाई ,
वह पूछती रह गई ,
पर किसी के मुंह से आवाज ना आई ।

ऐसे अजीब रिवाजों को देख बेटी सेहमाई ,
पर सब की मर्जी और रिवाजों के आगे ,
वह भी कुछ ना कर पाई ,
भरी आंखों से नर्म होठों से ,
उसके भी मन मै एक आवाज आई ,
बेटी कह के भी कर दी पराई ।

जननी और उसकी जान की होती यह कैसी जुदाई ,
जिसको देख कर हर किसी की आंख भर आई ,
सीने से लगाकर बड़े प्यार से रोते हुए ,
क्यों कर दी सब ने अपनी बेटी की विदाई ,
यह सब देख बेटी को बहुत रोना आया ,
पर उसके प्रश्नों का उत्तर आज तक कोई नहीं दे पाया ।

पर फिर भी बेटी ने अपना सारा फर्ज निभाया ,


एक ही नहीं बल्कि दो परिवारों को सजाया ,
सब में प्रेम जगाया हर रिश्ते  को बखूबी निभाया ,
सहा खुद दुख पर किसी को भी इसका एहसास ना दिलाया।
बेटी ने दो दो घरो को सजाया ।

बेटियों का सम्मान करें उनके हुनर से उनकी पहचान करे ।
Happy daughter's day ......

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